Hindi Poetry

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सांझ से पहले (कविताएँ)

इन गीत-कविताओं में ‘आंतरिक भाव-सघनता’ और एक उदास कवि लगातार मौजूद रहता है। यह कवि कई तरह स्वयं को अभिव्यक्त करता है लेकिन अपनी कविता में वह अ-शालीन नहीं होता है, उस समय भी नहीं जब वह दुनिया के ‘बाजारू-व्यवहार’ पर खिन्न या नाराज होता है।

संग्रह की 54वीं कविता ‘रहनुमा’ में नाराज होता कवि शब्द-विस्तार कर सकता था, आवेग को बाजारू भाषा के हल्के मनोरंजक पायदानों तक ला सकता था किन्तु वह ठगे गये नागरिक को इतना ही भला-बुरा कहता है:

मत अफसोस करो
निपट नंगे हो जाने का,
कि वो निकल लिए पिछले दरवाजे से
तुम्हारे रहनुमा होने का स्वांग रचकर
और तुम खर्राटे भरते रहे,
ख्वाबों में मनाते रहे उत्सव,
झूमते रहे दिवास्वप्न के उल्लास में।

ब्रजेन्द्र की इस संकलन की कविताएँ कुछ ठिठकी हुई, आज की हिन्दी कविताओं से काफी फासले पर खड़ी या कुछ उदास दिनों की छाया में बैठी है।
इन कविताओं में वे सारी संभावनाएं निहित हैं जो फिर एक कवि को यश के दीपित शिखर तक ले जा सकती हैं।
                                                                                                                                                                                            – नन्द चतुर्वेदी

Original price was: ₹200.00.Current price is: ₹175.00.

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सांझ से पहले (कविताएँ)

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